एम्बुलेंस में रखा बाबूजी का निष्प्राण शरीर
उनकी लुढकी आँखों के साथ
बैठी माँ
और हम दोनों भाई
दुर्गम घाटी के सुनसान रास्तों पर
सरपट दौडती
सन्नाटे और अँधियारे की छाती को चीरती
एम्बुलेंस की नीली बत्ती
माहौल भयानक पर हम सब भयरहित,
सर्वस्व छिन जाने के बाद
अब कैसा भय?
गड्ढों में एम्बुलेंस के उछलने पर
शरीर के इधर-उधर लुढकने पर
बरबस उनके आराम की चिंता
और फिर एक मायूस हँसी...
चिर निद्रा में आराम ही आराम
और जीवन का पूर्ण विश्राम...
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