(1)
अस्पताल के सामने के लॉज से
घबराते हुए निकलती
बदहवास सी
डगमगाती
बोझिल कदमों को जबरन
दौडाती
माँ....
फडफडाते होंठ,
राम-नाम की अनवरत जाप
व्योम में कुछ ढूँढती
पथरीली आँखों से
कुछ बूँदें
टपकाती
माँ.....
उसे ख़बर मिल चुकी है
कि अब किसी भी क्षण उसका
सर्वस्व छिनने वाला है
अस्पताल के कॉरीडोर से मैं उसे देखता हूँ
मेरा रोम-रोम कहता है,
घबरा मत
मेरी दुखियारी
माँ......
अब से..
उसके कदम जहाँ पडेंगे
वहाँ पहले मेरी हथेली होगी
उसकी नींद के लिए
पहले मेरी आँखें जगेंगी...
मेरे इन्हीं आश्वासनों पर
आँखों की बरसात
रोक डाली थी उसने
मेरी भोली
माँ....
(2)
पर उसे क्या पता था
उसने पानी का सोता ही
सुखा डाला
बहुत जरूरत पडने पर भी
खर्चने के लिए
अब उसके पास
एक बूँद भी नहीं
कितना कठिन है उन आश्वासनों को
एक-दो दिन से ज्यादा निभाना
हाय री, वह
बिचारी
माँ....
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