Thursday, February 11, 2016

निदा फाज़ली और जगजीत सिन्ह




बहुत तन्हा था जब वह 
तुमने उसके दुख को गीत में बदला था,

'तन्हा तन्हा दुख झेलेंगे, महफिल महफिल गायेंगे
जब तक आँसू पास रहेंगे, तब तक गीत सुनायेंगे'  
  
पुत्र वियोग में जब उसकी दुनिया उजडी थी
उसका दर्द रच-बस गया तुम्हारी रूह की गहराई में
तभी तो तुमने उसके लिए लिखा,

“अब खुशी है ना कोई दर्द रुलाने वाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला”

इससे पहले वह दर्द के अँधियारे में खो जाता
तुम्हारी इन पंक्तियों ने उसे राहत बक्शी थी,

एक मुसाफिर के सफर जैसी है सबकी दुनिया
कोई जल्दी में तो कोई देर से जाने वाला”  

जब चीत्कार करने को जी चाहा था उसका
तब भी तुमने उसका साथ दिया और लिखा,

बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता.”

दर्द बढ कर फुग़ाँ हो जाने से पहले
तुमने उसे जीने का सलीका सिखाया और सलाह दी,

“अपना ग़म ले के कहीं और ना जाया जाए
घर की बिखरी हुई चीजों को सजाया जाए”

उसके आँसू तुम्हारी कलम से हर्फ़ बन 
काग़ज़ पर बहे और  
तुम्हारे अलफाज़ को आवाज़ दे
सहलाता रहा वह अपने दर्द सारी उम्र 
तुम्हारे इन्हीं अलफाज़ों ने
नए माएने दिए उसकी गज़लों को
अब आज उसके जन्म दिन पर दोस्ती निभाते
जब तुम भी रुख़सत हो चले
तो तुम्हारी ही लिखी पंक्तियाँ तुम्हें कहता हूँ,

“उसको रुख़सत तो किया मुझे मालूम ना था
सारा घर ले गया, घर छोड कर जाने वाला”
 08.02.2016


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