आज की रात आख़िरी है मधुबनी में मेरी यह रात
फिर न होगी वह रातों को छत पर टहलने की बात
वो चाँद का छत की रेलिंग पकड कर बारहा टँगना
कभी टंकी के पीछे औंधे मुँह फिसल कर गिरा पाना
उतर आना मेरे कमरे में रोशनदान से अक्सर
टाइल्स की फर्श पर बैठ टकटकी बाँध कर तकना
वो हमसफर बन ट्रेन के फिर साथ
ही चलना
मेरे सुख-दुख का साथी बन हमेशा
राजदां रहना
सबेरे ट्रेन की आवाज़ सुन कर मेरा जगना
इक ख़याल कि कोई आएगा दिल में कहीं बसना
दरवाज़े पर हर आहट से फिर चौंक कर उठना
दरवाज़े पर हर आहट से फिर चौंक कर उठना
मायूस हो जाना, चाँद की राह फिर तकना
कितना तन्हा गुज़रेगी कल से उस घर के छत की रात
बहुत रोएगा मेरे बग़ैर वो मधुबनी का चाँद ...!!
No comments:
Post a Comment