Sunday, November 8, 2015

आख़िरी रात



आज की रात आख़िरी है मधुबनी में मेरी यह रात
फिर होगी वह रातों को छत पर टहलने की बात

वो चाँद का छत की रेलिंग पकड कर बारहा टँगना
कभी टंकी के पीछे औंधे मुँह फिसल कर गिरा पाना
उतर आना मेरे कमरे में रोशनदान से अक्सर
टाइल्स की फर्श पर बैठ टकटकी बाँध कर तकना
वो हमसफर बन ट्रेन के फिर साथ ही चलना
मेरे सुख-दुख का साथी बन हमेशा राजदां रहना

सबेरे  ट्रेन की आवाज़ सुन कर मेरा जगना
इक ख़याल कि कोई आएगा दिल में कहीं बसना
दरवाज़े पर हर आहट से फिर चौंक कर उठना
मायूस हो जाना, चाँद की राह फिर तकना

कितना तन्हा गुज़रेगी कल से उस घर के छत की रात
बहुत रोएगा मेरे बग़ैर वो मधुबनी का चाँद ...!! 


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