मैं वर्तमान में
जीना चाहता हूँ
प्रतिक्षण बीतते लमहों
के बीच
इस वर्तमान को ढूँढा
है मैंने कई जगहों पर
बहती नदी में
पर हर प्रवाह बीतती दिखी
है मुझे
मैं दो प्रवाहों के बीच
उसे पकड़ना चाहता हूँ
चढ़ते सूरज में
पर चढ़ते सूरज के साथ मिली है बढ़ती गर्मी मुझे
मैं प्रतिक्षण बढ़ते तापों
के बीच ठहरना चाहता हूँ
बादलों में
पर बदलता मिला है
रंग बादलों का प्रतिपल
मैं बदलते रंगों के बीच
का रंग छूना चाहता हूँ
झरनों के गिरते पानी
में
पर शोर मचाते बहते पानी
में कोलाहल मिला है मुझे
मैं गिरते पानी की खामोशी महसूस करना चाहता हूँ
हवाओं में, फूलों की खुशबू में
पर हवाओं की अलग-अलग
गंध मिली है मुझे
मैं हवाओं में खुशबूओं
के घुलने का पल देखना चाहता हूँ
लेखों में, शब्दों और हर्फों में भी ढूँढा है उसे
पर ‘पल’ शब्द के दोनों अक्षरों के बीच एक लम्बी दूरी मिली मुझे
इस दूरी को मैं पाटना
चाहता हूँ
अक्षरों के बीच की दूरी
का अहसास डाल देता है मुझे
भूत और भविष्य की
उलझन में
पल के ‘प’ के आने के बाद जुड़ना ‘ल’ का
बना देना ‘प’ को बीता हुआ और ‘ल’ को आने वाला
‘प’ भूत, ‘ल’ भविष्यत
मैं इन दो अक्षरों
के बीच की जगह में जीना चाहता हूँ
मैंने ‘पल’
की तरह ‘तुम’ में भी ढूँढा है उसे
पर तुम का ‘तू’ बीता हुआ मिला मुझे
मैं ‘तुम और मैं’ के बीच में साँस लेना चाहता हूँ
जहाँ ना तुम ‘तुम’ रहो
ना मैं ‘मैं’
मुझे वर्तमान का पता दे दो
कि जी सकूँ उसके साथ
मुक्त
नि:शब्द
निर्द्वंद्व...!!