कल सामने ही तो
टँगा था आसमान में
शुभ्र, धवल, तेज,
चमकता हुआ
बिल्कुल हँसिया की
तरह तेज धार वाला
आधा चाँद
उसके सामने ही तारे
भी थे दो
त्रिभुज बनाते हुए
आसमान की ठुड्ढी में
देर तक निहारता रहा
ठीक ऐसा ही दिखता है चाँद
शिव के मस्तक पर
कैलेंडरों में
सोचा, शिव भी होगा
उसके नीचे
शायद दिख जाए कहीं
पर अपवित्र, पाप की
गठरी मैं...
उदास कमरे में लौट
आया
दूसरे दिन
उमस भरी गर्मी में
निकल आया फिर छत पर
कहीं नहीं दिखा पूरे
आसमान में फिर चाँद
न बदली छाई थी
न ही
बादलों की कोई ओट थी
तारों से पटा था
आसमान
कल कैसा खिलखिलाता हुआ चमक रहा था
'ब्यूटी-स्पॉट' भी बनाया था
आसमान के चेहरे पर
आज न जाने किधर उडा के ले गई हवा चाँद
तभी अचानक नज़र आया वह
आसमान के बिल्कुल
नीचे
खेतों में उतरा हुआ
धूल-धूसरित,
पीला, मटमैला
पवित्र कर गया मुझे
फसल चूमता
मधुबनी का
चाँद...!!
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