1.
कल रात देखा इक ख़्वाब
कि जनाज़ा उठ रहा है मेरा
बदहवास से थे चेहरे कई
और सूजी हुई थी आँखें सबकी
आँचल से ढके चेहरे में
सुबकता हुआ खो गया भीड में कोई
आँख खुली तो देखा
चाय की प्याली लिए खडी थी सामने सुधा
बोली,
देर से निहार रही थी तुमको
क्या देख रहे थे कोई मीठा सपना?
2.
ख़्वाब देखते हुए तुम अच्छे दिखते हो
ख़्वाब देखते हुए तुम अच्छे दिखते हो
और सच्चे भी
इसलिए जगाया नहीं तुमको
मैं क्या कहता?
एक तो घबराया हुआ था
ख़्याले-मौत से अपनी
और दूसरी तरफ इक सुकून भी था ज़ेहनो-दिल में
कोई तो है?
भूला नहीं जो मुझको मेरे मरने के बाद भी
बस इतना ही कहा,
नहीं कोई ख़्वाब नहीं..
3.
बोली वह,
झूठ बोलते तुम पकडे जाते हो
मैंने साफ देखा था
ढूँढ रही थी
तुम्हारी अधखुली आँखें
ढूँढ रही थी
तुम्हारी अधखुली आँखें
शायद किसी को
भूल चुका है जो तुम्हें
चलते चलते मुख़्तलिफ राहों पे अपने
बेमानी है ठंढे रिश्तों की तलाश
जिस तरह अब यह चाय
जिस तरह अब यह चाय
ठंढी हो चुकी है....!!
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