Saturday, August 11, 2012

जन्मदिन पर


ज़िन्दगी की जमापूँजी में से
जैसे पचास बरस खर्च हुए
वैसे खिसक गए
दो चार और साल
और खडा रहा मैं
जहाँ के तहाँ
हासिल हुए सिर्फ कुछ सफेद बाल

ये ज़िन्दगी भी बडी अजीब शै है
आप चलें,
दौडें या रूके रहें
बीत जाती है यह
पर कर जाती है एक सवाल
और माँगती है जवाब....

मुझे याद नहीं कि
ये चार बरस मैंने खर्च किए
या चोरी चले गए
या राह चलते कहीं यूँ ही गिर गए
या किसी ने मुझसे छीन लिए ....

मैंने रक्खे नहीं हैं कोई हिसाब
इसलिए कैसे दूँ उसे जवाब...


1 comment:

Buzz said...

Beautiful one. Happy Birthday. Loved the line:
ज़िन्दगी की जमापूँजी में से
जैसे पचास बरस खर्च हुए वैसे
खिसक गए दो चार और साल और
खडा रहा मैं जहाँ के तहाँ हासिल हुए सिर्फ कुछ सफेद बाल