माँ यह कैसा शोर है
सोने नहीं देता मुझे चैन से
दफ़्न हो कर भी
सियाचीन में बर्फ़ में जब दबा
हुआ था मैं
मुझे तेरी बहुत याद आई थी
याद आए थे मेरे कई साथी भी
जो मुझसे कुछ दूरी पर ही
दबे पडे थे
मुझे नहीं पता कि उनमें
कितनों ने
दम तोडा था मुझसे पहले
ठंढ से काठ हो चुकी थी
साँसे सबकी
पर फख़्र है हमें इस बात का
कि तेरी हिफाजत में कोई कसर
नहीं छोडी थी हमने
साँसे तो मेरी भी उखडने को बेताब
थीं
पर तेरी हथेलियों की
गर्माहट
अपने गालों पर महसूस कर
सुनता रहा था तेरे दिल की
धडकन
थाम रखा था तेरी आस और सबकी
दुआओं ने
मुझे कई दिनों तक
बर्फ़ की चादर हटा निकल गई जब
रूह मेरी
क्यों नहीं मिल रही पनाह मुझे
कह दो इन सरफिरों से
इतना शोर न करें
बोलने की आज़ादी के नाम पर
कितना बोलते हैं सब
माँ, तेरी हिफाज़त की चिंता अब
खाए जा रही है मुझे
शोर ये थमे
के नींद आए मुझे..!!