Sunday, November 22, 2015

गंगासेतु पर ट्राफिक जाम


सरकती मिलेंगी कारें, यह सोचा नहीं था
भयंकर मिलेगा जाम, यह सोचा नहीं था

बडी उम्मीद से निकला था जल्दी घर पहुँचने को
सुबह से हो जाएगी रात, यह सोचा नहीं था

सडक पर भागते फिरते लोगों के किस्से पुराने हैं
यहाँ ठहरी मिलेगी ज़िंदगी, यह सोचा नहीं था

घंटों के सफर के बाद जब हम बीच तक पहुँचे
हुआ उस पार फिर से दूर, यह सोचा नहीं था

उबासी ले ले के जब थक गया मेरा चेहरा
बुझेगी आखिरी किरण उम्मीद की, यह सोचा नहीं था

बचा आधा भी होगा कभी पूरा, जब सोच में आया
दिखेगी उस पार की बस्ती, यह सोचा नहीं था

हमारी दिनभर की जद्दोज़हद से बेखबर हो कर
मकाँ के सब मकीम सोए मिलेंगे, यह सोचा नहीं था

आधी रात को जब मैं थका हारा जो घर पहुँचा
माँ के हाथ का खाना मिलेगा, यह सोचा नहीं था

Sunday, November 8, 2015

आख़िरी रात



आज की रात आख़िरी है मधुबनी में मेरी यह रात
फिर होगी वह रातों को छत पर टहलने की बात

वो चाँद का छत की रेलिंग पकड कर बारहा टँगना
कभी टंकी के पीछे औंधे मुँह फिसल कर गिरा पाना
उतर आना मेरे कमरे में रोशनदान से अक्सर
टाइल्स की फर्श पर बैठ टकटकी बाँध कर तकना
वो हमसफर बन ट्रेन के फिर साथ ही चलना
मेरे सुख-दुख का साथी बन हमेशा राजदां रहना

सबेरे  ट्रेन की आवाज़ सुन कर मेरा जगना
इक ख़याल कि कोई आएगा दिल में कहीं बसना
दरवाज़े पर हर आहट से फिर चौंक कर उठना
मायूस हो जाना, चाँद की राह फिर तकना

कितना तन्हा गुज़रेगी कल से उस घर के छत की रात
बहुत रोएगा मेरे बग़ैर वो मधुबनी का चाँद ...!!