Monday, June 22, 2015

मधुबनी का चाँद


कल सामने ही तो टँगा था आसमान में   
शुभ्र, धवल, तेज, चमकता हुआ
बिल्कुल हँसिया की तरह तेज धार वाला
आधा चाँद

उसके सामने ही तारे भी थे दो
त्रिभुज बनाते हुए
आसमान की ठुड्ढी में

देर तक निहारता रहा
ठीक ऐसा ही दिखता है चाँद 
शिव के मस्तक पर  
कैलेंडरों में
सोचा, शिव भी होगा उसके नीचे
शायद दिख जाए कहीं
पर अपवित्र, पाप की गठरी मैं...  
उदास कमरे में लौट आया

दूसरे दिन 
उमस भरी गर्मी में निकल आया फिर छत पर
कहीं नहीं दिखा पूरे आसमान में फिर चाँद
न बदली छाई थी
न ही बादलों की कोई ओट थी
तारों से पटा था आसमान
कल कैसा खिलखिलाता हुआ चमक रहा था
'ब्यूटी-स्पॉट'  भी बनाया था
आसमान के चेहरे पर  
आज न जाने किधर उडा के ले गई हवा चाँद

तभी अचानक नज़र आया वह
आसमान के बिल्कुल नीचे  
खेतों में उतरा हुआ   
धूल-धूसरित,
पीला, मटमैला 

पवित्र कर गया मुझे
फसल चूमता
मधुबनी का चाँद...!!   

Sunday, June 14, 2015

ख़्वाब

1.

कल रात देखा इक ख़्वाब
कि जनाज़ा उठ रहा है मेरा
बदहवास से थे चेहरे कई
और सूजी हुई थी आँखें सबकी
आँचल से ढके चेहरे में
सुबकता हुआ खो गया भीड में कोई

आँख खुली तो देखा
चाय की प्याली लिए खडी थी सामने सुधा
बोली,
देर से निहार रही थी तुमको
क्या देख रहे थे कोई मीठा सपना?

2.

ख़्वाब देखते हुए तुम अच्छे दिखते हो
और सच्चे भी
इसलिए जगाया नहीं तुमको
मैं क्या कहता?
एक तो घबराया हुआ था
ख़्याले-मौत से अपनी
और दूसरी तरफ इक सुकून भी था ज़ेहनो-दिल में
कोई तो है?
भूला नहीं जो मुझको मेरे मरने के बाद भी
बस इतना ही कहा,
नहीं कोई ख़्वाब नहीं..

3.

बोली वह,
झूठ बोलते तुम पकडे जाते हो
मैंने साफ देखा था
ढूँढ रही थी
तुम्हारी अधखुली आँखें 
शायद किसी को
भूल चुका है जो तुम्हें
चलते चलते मुख़्तलिफ राहों पे अपने
बेमानी है ठंढे रिश्तों की तलाश  
जिस तरह अब यह चाय
ठंढी हो चुकी है....!!