रंग
कुदरत के
सरहद
नहीं जानता
न ही
होता है कोई मजहब इसका
बस
कुदरत के इन रंगों को हम
क़ैद कर
सकते हैं ट्यूबों में
जिसे
कोई मुसव्विर निकालता है
अपने
पैलेट पर
फिर
बिखेरता है इन्हें
कैनवास
के सादे आसमान पर
और
उकेरता है कोई रंग-बिरंगी
कुदरत की ही कोई तस्वीर
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