Sunday, June 1, 2014

बदायूँ की हैवानियत




रात अभी बाकी है,
भोर का उजाला भी आसमान में छिटका नहीं है अभी
पलकें भी नींद से बोझिल हैं 
अभी और सोने दो न अम्मा...

अम्मा बोली,

ना मेरी बिटिया,
यह अँधेरा हमारे लिए बहुत जरूरी है
यही मौका है जाने का खेतों में
या सडक किनारे

डर लगता है
भोर के उजाले से
पेडों की शाखों से झूलती रस्सी पे लटकते हुए मंजर
से बेहतर हैं ये स्याह रातें
मेरी बच्ची....!! 

31.05.2014



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