1.
उस घर के तीसरे माले की छत के एक कोने में दुबके
उस घर के तीसरे माले की छत के एक कोने में दुबके
एक तन्हा कमरे में
आता रहा सैलाब रात भर
जब बरसता रहा बादल छत पर
पूरी रात...
बरसात और शहर की बिजली के मरासिम कभी अच्छे नहीं
रहे
टूट के बादल के बरसते ही गुल हुई बिजलीघुप्प अँधेरे में कभी कभार
रोशन हो जाता पूरा कमरा
एक बारगी ही
बिजली के कडकने से
और घबरा कर लिपट जाता मैं
अपनी ही तनहाई की बाँहों में
सहमा-सहमा
महसूस करता रहा मैं
रोशनदान से आते
बारिशों की फुहारों के छींटे
चारपाई पर यूँ ही लेटा-लेटा
अपने चेहरे पर
रात भर...
फिर सबेरे चारपाई से उतरते वक्त
पडा पाँव छपाक से
उस सैलाब में
उस सैलाब में
और पाया
दूर किसी कोने में
दीवार के सहारे सटे चप्पलों को
जैसे लहरों में हिचकोले खाती बहती हुई
बिन नाविक की नावें
लगी हों
बिन नाविक की नावें
लगी हों
अपने अपने किनारे...!!
2.
रसोई के जूठे बर्तन,
चप्पलें बह कर जा लगी थीं
2.
रात भर की तेज बारिश के बाद
जब आँख खुली सबेरे
तो कमरे में एक सैलाब सा था
जैसे बारिश टूट कर बरसी हो
छत के साथ-साथ
मेरे कमरे में भी
रसोई के जूठे बर्तन,
तसले और तश्तरियाँ
तैर रही थीं
उस सैलाब में
जैसे मौसम आया हो
सैलानियों का
और छूट कर छोडी गई हों नावें
तफरीह करने के लिए
दरियाओं में
चप्पलें बह कर जा लगी थीं
दूर एक कोने में
जैसे बिन खेवैया की कोई नाव
उपलाती रहती है किसी नदी के किनारे
एक ख़याल आया जैसे
यह सैलाब बारिश का नहीं,
मेरे तनहापन का हो
जो अँधेरे बन्द कमरे में
बरसता और बढता रहा हो
रात भर
तभी देखा,
मोरी में फँसा हुआ था
मेरे जूते का एक मोज़ा...!!
22.06.2014