आदमी
के न जाने कितने रूपों से
रोज़
होता है मेरा सामना
रूप
विद्रूप इन चेहरों से
अक्सर
रहता हूँ मैं अनमना
कोई
विपन्न मिलते तो कई धनी
कोई
वंचित तो कोई बेहद गुनी
कोई
उच्च पदासीन तो कोई बेरोजगार
कोई
खुशहाल तो मिलते कई बेहाल
कोई
लम्बा तो किसी का नाटा कद
कोई
काला तो कोई गोरा बेहद
कोई
शांत चित्त तो कोई वाचाल
कोई
रूप धर लेता विकराल
मंडराते
रहते इर्द-गिर्द वे मेरे
द्वेष,
घृणा, ईर्ष्या से मन भरे
कैसे
बिठाऊँ इनसे मैं सामंजस्य
काश
सुलझ जाए कभी यह रहस्य
होकर
एक दिन मैं बेहद परेशान
चुपचाप
देखने लगा आसमान
देखते
ही देखते बादलों ने रंग बदले
देखा
न था यहाँ दृश्य कभी पहले
तभी
चहचहाते पंक्षियों का एक झुंड
उड
चला जंगलों की ओर
भूल
गई पलकें झपकना
मन
हुआ मेरा विभोर
जंगलों
से मुझे फिर याद आया
अनगिनत
पेडों से फैला था साया
खूबसूरत
रंगों की छटा थी चारों तरफ
दूर
पहाडी की चोटी पर चमकती थी बरफý
फिर पडी खेतों पर मेरी जो नज़र
दूर
तक देखी लहलहाती फसल
बागीचे
में भी रंग बिरंगे फूल थे
कुछ
लाल-पीले और कुछ थे हरे
एक
ही खेत में अनगिनत थी सब्जियाँ
अनगिनत
फल-फूल और रंग-बिरंगी तितलियाँÝ
मैंने
देखे कहीं पर फूल कहीं पर काँटे
ईश्वर
ने इसी तरह सुख-दुख भी बाँटे
इंसान
भी है प्रकृति का ही एक हिस्सा
उसका
भी है एक सुन्दर सा किस्सा
वह
भी कुदरत का एक खूबसूरत रंग है
प्रकृति
का अविच्छिन्न और अभिन्न अंग है
विविधता
जब ईश्वर को है पसन्द
मैं
करूँ कैसे उसे फिर नापसन्द
इंसान
की इंसान से जब हो मोहब्बत
तब
कहीं होगी ईश्वर की इबादत
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