Thursday, December 15, 2011

हवा की सरहद


यह ठीक है कि मेरी कोई सरहद नहीं
गाँव नहीं
शहर नहीं
मुल्क नहीं, वतन नहीं
पर कोई पूछे मुझसे तो मैं कहूँ
कि गाँव ही है मुझे पसन्द
गाँव की मिट्टी की खुशबू
जब मुझमें घुलती है
तो बिखेरती हूँ मैं सुगंध
इसीलिए गाँव ही है मुझे पसन्द....



अमराइयों से गुजरते हुए
खेतों से मचलते हुए
लहलहाते बालियों को चूमते हुए
कृषकों को उमगाते हुए
गृहणियों को उकसाते हुए
बहती हूँ मैं मंद-मंद
गाँव ही है मुझे पसन्द..


खुशबू सी घुलती है
धूप भी मीठी लगती है
लगते हैं पेडों पर झूले
मिलते हैं भटके औभूले
निकलती हैं लटाइयाँ
माँझे होते हैं धागे
उडती हैं पतंग
गाँव ही है मुझे पसंद


ये काटा...लो...वो काटा
आपस में सुख-दुख को बाँटा
कटी पतंग तो दौडे बच्चे
जिनके मन होते हैं सच्चे
उनकी मस्ती मुझे लुभाती
इधर-उधर उन्हें खूब नचाती
हिचकोले खा बच्चे भागे
आधे नंग-धडंग
इसीलिए गाँव है मुझे पसन्द....


तुम्हारे शहर में ?
तुम्हारे शहर में कहाँ मुझको मिलती
वो आशा की ज्योति वो बच्चों की मस्ती
तुम्हारे शहर में तो खबरें हैं दंगे-फसाद के
बडे क्या, बच्चों के मन भी भरे अवसाद से
करें सब शोर-शराबा
कहीं पर खून खराबा
अपना दामन बचाते
नाम मेरा लगाते
सब यही कहते फिरते
यह उल्टी हवा है,
यह कैसी हवा है?’’

वादा

उससे मेरा वादा हँसते रहने का
लाख बलाएँ हों अब सब-कुछ सहने का

पथरीली राहें हों या हों दुर्गम घाटी
याद उसे कर अब बस चलते रहने का

जबसे मेरी बाँहों को उसने थामा है
अब और नहीं मुझको कुछ कहने-सुनने का

आँखों से ही कह देती है सब बातें
मुँह से नहीं जरूरी है कुछ कहने का

उसका जब भी क़ासिद कोई ख़त लाए
छत पर धूप में जाकर पढते रहने का

उसकी याद में कट जायेंगे बाकी ये दिन
खौफ नहीं मुझको अब तन्हा रहने का

इंसान के अनगिनत चेहरे


आदमी के न जाने कितने रूपों से
रोज़ होता है मेरा सामना
रूप विद्रूप इन चेहरों से
अक्सर रहता हूँ मैं अनमना

कोई विपन्न मिलते तो कई धनी
कोई वंचित तो कोई बेहद गुनी
कोई उच्च पदासीन तो कोई बेरोजगार
कोई खुशहाल तो मिलते कई बेहाल

कोई लम्बा तो किसी का नाटा कद
कोई काला तो कोई गोरा बेहद
कोई शांत चित्त तो कोई वाचाल
कोई रूप धर लेता विकराल

मंडराते रहते इर्द-गिर्द वे मेरे
द्वेष, घृणा, ईर्ष्या से मन भरे
कैसे बिठाऊँ इनसे मैं सामंजस्य
काश सुलझ जाए कभी यह रहस्य

होकर एक दिन मैं बेहद परेशान
चुपचाप देखने लगा आसमान
देखते ही देखते  बादलों ने रंग बदले
देखा न था यहाँ दृश्य कभी पहले

तभी चहचहाते पंक्षियों का एक झुंड
उड चला जंगलों की ओर
भूल गई पलकें झपकना
मन हुआ मेरा विभोर

जंगलों से मुझे फिर याद आया
अनगिनत पेडों से फैला था साया
खूबसूरत रंगों की छटा थी चारों तरफ
दूर पहाडी की चोटी पर चमकती थी बरफý

फिर पडी खेतों पर मेरी जो नज़र
दूर तक देखी लहलहाती फसल
बागीचे में भी रंग बिरंगे फूल थे
कुछ लाल-पीले और कुछ थे हरे

एक ही खेत में अनगिनत थी सब्जियाँ
अनगिनत फल-फूल और रंग-बिरंगी तितलियाँÝ
मैंने देखे कहीं पर फूल कहीं पर काँटे
ईश्वर ने इसी तरह सुख-दुख भी बाँटे

इंसान भी है प्रकृति का ही एक हिस्सा
उसका भी है एक सुन्दर सा किस्सा
वह भी कुदरत का एक खूबसूरत रंग है
प्रकृति का अविच्छिन्न और अभिन्न अंग है

विविधता जब ईश्वर को है पसन्द
मैं करूँ कैसे उसे फिर नापसन्द
इंसान की इंसान से जब हो मोहब्बत
तब कहीं होगी ईश्वर की इबादत


राम के सान्निध्य की प्रार्थना


प्रार्थना
(1)
संसार में आते ही
मुखरित हुई थी सबसे पहले वाणी ही

कितना आश्चर्य
कितनी पीडा
कितना संशय
कितनी छ्टपटाहट
और बेचैनी से हमने रो रोकर कहा .
केहाँ...केहाँ,,,, अर्थात कहाँ...कहाँ..

काश,
गर्भनाल से कटने के बाद
उच्चरित होता तुम्हारा नाम
फिर हो जाता हमारा यह सफर
कितना आसान

भवसागर में तैरते, उपलाते  
रामसेतु के पत्थर की तरह
तुम्हारे नाम से हम ...
पार होते, औरों को भी कराते
हँसते हुए आते, हँसते हुए जाते
टूटने पर डाली से किसी पत्ते की तरह
पीडा न होती
हो जाता बराबर टूटना और जुडना तब

खैर,
देर नहीं हुई है अब भी
जाते वक्त कम से कम
निकले मुख से तेरा नाम
ऐसा ही वर दो
हमको हे राम !

(2)

सान्निध्य
मालूम होता गर तुम्हें
तुम्हारा साथ नहीं रहने पर
कितना गुमराह हुए हैं हम
तो शायद
अलग न करते
अपने से
कभी यूँ

हाथ-पाँव मारे हमने
कुछ पाया
कुछ खोया
खोया तो किस्मत को दोषी माना
पाया तो अपनी काबलियत समझी
जो भी पाया
गुमान हुआ हमें
पाने का गुमान
कुछ करने का गुमान
फूल गए हम कर्ता भाव से
समझने लगे खुद को
सर्वशक्तिमान
विद्या प्राप्त की तो
ज्ञान का मद हुआ
भक्ति की तो उपदेशक बन गया
धनार्जन किया तो धन के मद में चूर हुआ
शक्ति प्राप्त की तो मदान्ध हो गया

तुम साथ रहते तो कभी न होता ऐसा
तुम्हारे सान्निध्य में
हमारा मद
दम में बदल जाता
मद में आदमी होता है मदान्ध
पर दम में दमदार
दम हमें सिखाता दमित करना
अपने अहं को, अपने मैं को
तभी तो दम है शक्ति
जिसने दमित करना सीखा
वही हुआ ज्ञानी और शक्तिवान