Saturday, August 11, 2012

जन्मदिन पर


ज़िन्दगी की जमापूँजी में से
जैसे पचास बरस खर्च हुए
वैसे खिसक गए
दो चार और साल
और खडा रहा मैं
जहाँ के तहाँ
हासिल हुए सिर्फ कुछ सफेद बाल

ये ज़िन्दगी भी बडी अजीब शै है
आप चलें,
दौडें या रूके रहें
बीत जाती है यह
पर कर जाती है एक सवाल
और माँगती है जवाब....

मुझे याद नहीं कि
ये चार बरस मैंने खर्च किए
या चोरी चले गए
या राह चलते कहीं यूँ ही गिर गए
या किसी ने मुझसे छीन लिए ....

मैंने रक्खे नहीं हैं कोई हिसाब
इसलिए कैसे दूँ उसे जवाब...


Friday, August 10, 2012

तलाश


पिताजी मुझे आशीर्वाद दीजिए
मैं घर छोड कर जा रहा हूँ,
कहाँ?”
ढूंढने रिश्तों को
परिवार को
मोहल्ले को
समाज को
प्रांत को
फिर देश को...

वह देश
जहाँ नहीं हो किसी के दिल में द्वेष
वह प्रांत
जहाँ नहीं हो कोई भी क्लांत
वह समाज
जहाँ सबके लिए हो काम-काज
वह मोहल्ला
जहाँ व्यर्थ न हो हल्ला-गुल्ला
वह परिवार
जहाँ अतिथियों का हो सत्कार
वह रिश्ता
जिसमें हो प्यार और सहिष्णुता

पिता ने गहरी साँसें लीं
बरसों पहले वे भी निकले थे ढूँढने
यही सब
पर थक हार सब्र कर लिया था उन्होंने
आज फिर जगी एक आस
उन्होंने आशीर्वाद दिया
काश,
पूर्ण हो तुम्हारी तलाश..!!
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