Tuesday, February 7, 2012

पटना



अलसाया सा यह शहर
करवटें बदलने लगा है
धूल से सने जिस्म को
झाड पोंछ उठ खडा होने को बेताब
बदन के अलग-अलग हिस्सों को
जोडने वाले फ्लाई ओवरों पर
सुबह-सुबह दफ्तरों के लिए भागम-भाग करते लोग
मोटर-साइकिल और दौडती भागती अनगिनत गाडियाँ
मुँह ढापे और बाँहों तक दस्ताने चढाए
स्कूटी चलाती लडकियाँ.....
शहर अचानक ही जवान हो गया
जैसे उसने कॉस्मेटिक सर्जरी कराई हो...

गोलघर से देखने पर अब यह वीरान नहीं दीखता
ऊँची-ऊँची इमारतें सर उठाए दिखने लगी हैं
स्कूल की बसों की कतारें
रोज़गार के लिए दूर-दराज से आए लोगों का हुजूम
शॉपिंग मॉल और मल्टीप्लेक्स सिनेमा में जाते लोग
मूँगफली खाते और चाय की दुकान पर गपियाते लोग
चकाचौंध रात में गाँधी मैदान की आगोश में लिपटे
और फुटपाथ पर कुत्तों के साथ सोए रिक्शे और ठेले वाले
स्टेशन के पास ही
मंदिर और मस्जिद का एक साथ ही सबेरे उठना
यह पटना है पटना
जिसे गुमान है कि यहाँ कभी नहीं घटी
मानवता को शर्मसार करने वाली कोई घटना

बस एक दर्द लिए कराहता है यह शहर ..
बढती भीड और मलबों से घबरा कर
गंगा ने अपने घाटों से मुँह मोड लिया है


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