Monday, February 20, 2012

ज़िन्दगी की शक्लें

मौत ने जब हल्की दस्तक दी
तो उसने जाना कि ज़िन्दगी क्या है

ऑपरेशन थियेटर में स्ट्रेचर पर लेटे
बडे-बडे संयंत्रों को देखते
जब उसने मास्क लगाए डॉक्टरों को देखा
तो उसे जिन्दगी आती दिखाई दी थी
हाथ पकडकर बिठाती इससे पहले
बेहोशी की सूई ने उसे सुला दिया
पानी चढते बोतलों से बूँद-बूँद टपकती जिन्दगी ने
दबे पाँव आकर मौत को चुनौती दी थी
आँख खुली तो उसने फिर उसे देखा
आई.वी. इंजेक्शन में
डॉक्टरों के राउन्ड में
नर्सों की सेवाओं में
लोगों के मिलने में
और उनकी दुआओं में
सिरहाने रखे ताबीज में
”गेट वेल सून” कार्ड में
और बायोप्सी की रिपोर्ट में....

गुलज़ार ने कितना सही कहा है कि
"जिन्दगी क्या है जानने के लिए
जिन्दा रहना बहुत जरूरी है"

Saturday, February 18, 2012

कमरा नम्बर पचीस सौ इक्कीस

मैक्स अस्पताल का कमरा नम्बर पचीस सौ इक्कीस
बत्ती की पीली रौशनी के नीचे
बिस्तर पर लेटी हुई वह चुपचाप
स्टैण्ड पर टँगी बोतलों से
बूँद-बूँद टपकते पानी को देखती है
और करती है महसूस
रगों में सूईयों के जरिए दौडती दवाइयाँ


न जाने कितने ज़ख़्मों को सहेजे थी वह अपने अन्दर
कुछ ने पत्थरों की शक्ल ले लिए थे
गॉल ब्लैडर में
कुछ ने कर दी थी तेज
दिल के धडकने की रफ्तार
कुछ ने ज़ुबान की शीरी
घोल दी थी ख़ून में
कितनी अजीब बात कि
चीनी ज़ुबान में हो तो अच्छा
खून में हो तो जानलेवा
यूटेरस में कैंसर के ख़तरे से भयाकुल
औरत होने की सज़ा भोग रही है वह
पर तसल्ली है कि
रग-रग में बह रहा है पानी
और कतरा-कतरा पिघलता जा रहा है जख़्म


- 18.02.2012

Tuesday, February 7, 2012

पटना



अलसाया सा यह शहर
करवटें बदलने लगा है
धूल से सने जिस्म को
झाड पोंछ उठ खडा होने को बेताब
बदन के अलग-अलग हिस्सों को
जोडने वाले फ्लाई ओवरों पर
सुबह-सुबह दफ्तरों के लिए भागम-भाग करते लोग
मोटर-साइकिल और दौडती भागती अनगिनत गाडियाँ
मुँह ढापे और बाँहों तक दस्ताने चढाए
स्कूटी चलाती लडकियाँ.....
शहर अचानक ही जवान हो गया
जैसे उसने कॉस्मेटिक सर्जरी कराई हो...

गोलघर से देखने पर अब यह वीरान नहीं दीखता
ऊँची-ऊँची इमारतें सर उठाए दिखने लगी हैं
स्कूल की बसों की कतारें
रोज़गार के लिए दूर-दराज से आए लोगों का हुजूम
शॉपिंग मॉल और मल्टीप्लेक्स सिनेमा में जाते लोग
मूँगफली खाते और चाय की दुकान पर गपियाते लोग
चकाचौंध रात में गाँधी मैदान की आगोश में लिपटे
और फुटपाथ पर कुत्तों के साथ सोए रिक्शे और ठेले वाले
स्टेशन के पास ही
मंदिर और मस्जिद का एक साथ ही सबेरे उठना
यह पटना है पटना
जिसे गुमान है कि यहाँ कभी नहीं घटी
मानवता को शर्मसार करने वाली कोई घटना

बस एक दर्द लिए कराहता है यह शहर ..
बढती भीड और मलबों से घबरा कर
गंगा ने अपने घाटों से मुँह मोड लिया है