Sunday, January 31, 2016

मौका


जब भी तुम कहती हो कि
कुदरत से मिलते हैं हमे बस तीन ही मौके
मै ख़्यालों में डूब जाता हूँ उदास होके

तुमने कहा था इतिहास के पन्ने उलट के देखो
जो सफल नही हुए हैं तीन मौकों में
ज़िंदगी की दौड से निकल जाते हैं बाहर

मुझे भी मिले थे तीन मौके
इजहार करने के लिए अपने दिल की बात
जब पहली बार मिली थी तुम
देर तक खामोशी छाई रही माहौल में  
और यूँ ही उठ कर चल दिए थे हम
फिर उस दिन सिनेमा हॉल के पीछे
कार पार्किंग मे अचानक ही भेंट हुई थी तुमसे
जब ठीक तुम्हारी कार की बगल मे
अनजाने ही अपनी कार पार्क कर दी थी मैंने 
इस संयोग पर भी मेरे होंठ सिले ही रहे
घर जाने के वक्त पेडों की झुरमुट से झाँकते चाँद को देखकर
तुमने पूछा भी था,
क्या पूरनमासी है, तभी तो पूरे चाँद की रात है
और मैंने तवज्जो नहीं दी थी  

मुझे पश्चाताप है अपनी चुप्पी का, अपनी बेरुख़ी का
मुझे दुख है अपने गँवाए हुए इन मौको का   
पर क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि
यह महज संयोग नहीं बल्कि है किस्मत का कोई लेखा जोखा
जो बार बार मै उन्हीं रास्तों से गुजरता हूँ
जहाँ से राहें तुम तक पहुँचती हैं

फिर क्यों ना मैं लगा रहूँ अपने प्रयासों में
गर छोड दूँ मैं कोशिशें तुम्हारे इतिहास के गवाहों से
फिर किंग ब्रुस की कहानी का क्या होगा
जिसने पाई सफलता सातवीं बार में
जब देखा मकडे को उसने
गिरते और उठते बार-बार
इक जाल बुनने में
एडीसन ने भी गर तीन बार में ही हार मान ली होती
तो राते रौशन नहीं होतीं हमारी बल्बों से

अब देखो न...
परीक्षाओं में भी मिलने लगे हैं पाँच-छ: मौके
मुझे भी दे दो एक और मौका
के खोल सकूँ सारी गिरहें अपने दिल की

हाँ, यह अलग बात है कि
कई प्रयासों के बाद जब मैं तुमसे मिलूँ
बदल जायेंगे कुछ माएने ज़िंदगी के
बहुत मुमकिन है 
तब हो जाए बेमानी 
बातें जिस्मानी …!!